बिन भाग मिले ना दुनियाँ में अमृत भोग ।।
मधु होत अमृत के समाना, खाय प्राण तज देता स्वाना।
मखियाँ करत गन्दगी नाना, घृत से ही प्राण वियोग ।।
मिश्री है अमृत से प्यारा, खर को देत तुरन्त जा मारा।
कौवा खाये नीम फल खारा, दाख पकयां गल रोग ।।
जहां कथा होती है हर की, वहाँ नही रहती रुचि नर की ।
के सोवे के बातां घर की, करण लग्या सब लोग ।।
जहां अप्सरा नर्तकी गावे, वहाँ जाकर सारी रैन बितावे ।
धुंकल कहे भाग सँ पावे, सत संगत सयोंग ।।
बोल नाथ जी महाराज की जय
Bhajan: बिन भाग मिले ना दुनियाँ में अमृत भोग |
Bin Bhag mile na dunia mein amrit bhog.
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