Tuesday, 14 February 2017

Shunn Ghar Shahar, Shahar Ghar Basti | शुन्न घर शहर, शहर घर बस्ती


शुन्न घर शहर, शहर घर बस्ती, कुण सैवे कुण जागै है ।
साध हमारे हम साधन कै, तन सोवै ब्रह्म जागै है ॥टेर॥


भंवर गुफा मे तपसी तापै, तपसी तपस्या करता है।
अस्त्र, वस्त्र कछु नही रखता नाग निर्भय रहता है ॥1॥

एक अप्सरा आगै ऊबी, दूजी सुरमो सारै है ।
तीजी सुषमण सेज बिछावै, परण्या नहीं कँवारा है ॥2॥

एक पिलंग पर दोय नर सुत्या, कुण सौवे कुण जागै है ।
च्यारुँ पाया दिवला जोया, चोर किस विध लागै है ॥3॥

जल बिच कमल, कमल बिच कलिया, भंवर वासना लेता है ।
पांचू चेला फिरै अकेला, ए अलख अलख जोगी करता है ॥4॥

जीवत जोगी माया भोगी, मूवा पत्थर नर माणी रै ।
खोज्या खबर करो घट भीतर, जोगाराम की बाणी रै ॥5॥

परण्या पहली पुत्र जलमिया, मातपिता मन भाया है ।
शरण मच्छेन्दर जति गोरक्ष बोल्या, एक अखण्डी नै ध्याया है ॥6॥

Song:

Shunn Ghar Shahar, Shahar Ghar Basti
शुन्न घर शहर, शहर घर बस्ती




3 comments:

  1. बहुत शानदार कलेक्शन ह जी .. धन्यवाद

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  2. शायद ये वाणी कबीरदास जी है

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