सतगुरुवाँ से मिलबा चालो ऐ, सजो सिनगारो ॥टेर॥
नीर गंगाजल सिर पर डारो, कचरो परै विडारो ये ।
मन मैले ने मल मल धोल्यो, साफ हुवै तन सारो ये ॥1॥
गम को घाघरो पैर सुहागण, नेम को नाड़ो सारो ये ।
जरणा री गाँठ जुगत से दिज्यो, लोग हँसेगो सारो ये ॥2॥
सत की स्यालु ओढ़ सुहागण, प्रेम की पटली मारो ये ।
राम नाम को गोटो लगाकर, ज्ञान घूंघटो सारो ये ॥3॥
ओर पियो मेरे दाय कोनी आवै, पियो करुँ करतारो ये ।
मेरो पियो मेरे घट में बसत है, पलक होवे न न्यारो ये ॥4॥
नाथ गुलाब मिल्या गुरु पुरा, म्हाने दियो शबद ललकारो ये ।
भानी नाथ गुराँजी के शरणै, सहजाँ मिल्यो किनारो ये ॥5॥
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नीर गंगाजल सिर पर डारो, कचरो परै विडारो ये ।
मन मैले ने मल मल धोल्यो, साफ हुवै तन सारो ये ॥1॥
गम को घाघरो पैर सुहागण, नेम को नाड़ो सारो ये ।
जरणा री गाँठ जुगत से दिज्यो, लोग हँसेगो सारो ये ॥2॥
सत की स्यालु ओढ़ सुहागण, प्रेम की पटली मारो ये ।
राम नाम को गोटो लगाकर, ज्ञान घूंघटो सारो ये ॥3॥
ओर पियो मेरे दाय कोनी आवै, पियो करुँ करतारो ये ।
मेरो पियो मेरे घट में बसत है, पलक होवे न न्यारो ये ॥4॥
नाथ गुलाब मिल्या गुरु पुरा, म्हाने दियो शबद ललकारो ये ।
भानी नाथ गुराँजी के शरणै, सहजाँ मिल्यो किनारो ये ॥5॥
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